
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में इस समय चुनावी गर्माहट साफ दिखाई देने लगी है. प्रदेश में ठंड के मौसम के बावजूद फिजां में चारों तरफ चुनावी माहौल में तपिश देखी जा रही है. पिछले एक हफ़्ते में बसपा के 8 , भारतीय समाज पार्टी के 4, कांग्रेस के एक पूर्व विधायक और पूर्व सांसद के अलावा बीजेपी का एक विधायक समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं.
बसपा के विधायकों के सपा में शामिल होने पर बसपा प्रवक्ता धर्मवीर ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जो विधायक सपा में गए हैं उन्हें जनता ने पहले ही नकार दिया है. ऐसे नाकारा लोग कहीं भी जाएं पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था.
बसपा नेता मायावती के करीबी रहे राम अचल राजभर लालजी वर्मा भी सपाई होंंगे. सात नवंबर को दोनों नेता आंबेडकर नगर ज़िले के अकबरपुर में अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे.
शनिवार को, बसपा के 6 बाग़ी विधायक समाजवादी से जुड़े. असलम राइनी (भिनगा-श्रावस्ती), असलम अली चौधरी (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीक़ी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हंडिया-प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), और सुषमा पटेल (मुंगरा-बादशाहपुर) अब बसपा छोड़ समाजवादी पार्टी में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं. साथ में भारतीय जनता पार्टी के सीतापुर से विधायक राजेश राठौड़ ने भी सपा की सदस्यता ली. सपा से जुड़ रहे नेताओं ने हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा के उपसभापति के चुनाव में सपा के प्रत्याशी नरेंद्र वर्मा को वोट दिया था.
टिकट बंटवारे पर लगी निगाहें
उत्तर प्रदेश में टिकटों के बंटवारे की अटकलों का दौर शुरु हो गया है. अमित शाह के लखनऊ दौरे के बाद राजनीतिक फ़िज़ा में यह बात चल रही है कि भाजपा अपने विधायकों के टिकट काटने जा रही है. अब तो पार्टी नेता भी मानने लगे हैं कि जो पार्टी नीतियों के साथ नहीं चल रहा उसे तो जाना होगा. नवीन श्रीवास्तव कहते हैं, कितने वर्तमान विधायकों का टिकट कटेगा इसकी संख्या कोई बता नहीं सकता है, लेकिन निश्चित रूप से पार्टी अपने कई स्तरों पर सर्वेक्षण करती हैं और जो हमारी पार्टी की नीतियों के हिसाब से नहीं चले रहे हैं, जो जनता के सुख दुःख में शामिल नहीं हुए हैं, निश्चित रूप से हम उनको दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर विचार करेंगे.”
जमीन छिनने का खतरा
जिन विधायकों को पार्टी से निकाला जाने वाला है या जो बसपा से निकाले गए हैं उनको अपनी राजनीतिक जमीन छिनने का खतरा महसूस हो रहा है. अपनी जमीन बचाने के लिए वे सपा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. सपा यदि दूसरी पार्टी से आये विधायकों को टिकट देती है तो उसके अपने कार्यकर्ताओं की भी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. वे भी वर्षों से टिकट की आस लगाए पार्टी का काम कर रहे हैं. अब उनका अधिकार बाहर से आए लोगों को मिलेगा तो वे भी दूसरी पार्टियों का रुख कर सकते हैं. अभी लोग सपा में जा रहे हैं. आने वाले समय में सपा से भी जाते हुए दिखाई देंगे. किसका पलड़ा भारी होता है वक्त बताएगा.