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मुंबई पुलिस का स्याह चेहरा भाग (4)
एनसीएसटी आयोग ने लगाई पुलिस को फटकार

दोषी अधिकारियों पर होगा एक्शन
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. म्हाडा के उपसमाज विकास अधिकारी युवराज सावंत ने मुंबई पुलिस अधिकारियों के तानाशाही रवैये और प्रताड़ना से परेशान राष्ट्रीय अनुसूचित जाती – ट्राइब आयोग (एनसीएसटी) में गुहार लगाई. याचिका की सुनवाई में मुंबई पुलिस के प्रवक्ता और जोन 5 के डीसीपी प्रणय अशोक और बांद्रा पुलिस स्टेशन के पद्माकर देवरे उपस्थित हुए थे.
आयोग ने अपने आदेश में कहा कि उपस्थित पुलिस अधिकारियों ने आयोग के समक्ष माना कि युवराज सावंत के विरुद्ध पुलिस द्वारा लगाया गया चार्ज साबित नहीं हो सका है. याचिकाकर्ता सावंत ने अपने उपर हुए अन्याय के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. वे मुंबई हाईकोर्ट में शपथपत्र देंगे की सावंत के खिलाफ अपराध साबित नहीं हुआ है.
आयोग ने कहा कि वे मुंबई हाईकोर्ट का आदेश आने तक इंतजार करेंगे. तब तक मुंबई पुलिस याचिकाकर्ता को पूरा पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराएगी . यह भी ध्यान रहे कि आगे से याचिकाकर्ता को प्रताडित न किया जाए.
युवराज सावंत ने आयोग को दिये अपनी याचिका में खार पुलिस के एपीआई किशोर पवार, सीनियर पीआई संजय मोरे, तत्कालीन प्रभारी नंदकुमार गोपाले, उनके सहयोगी अनिल जैतापकर, संदेश वाईरकर, केतन पवार, राकेश पवार, योगेश अहिरे और गलत रिपोर्ट देने वाले क्राइम ब्रांच यूनिट 7 घाटकोपर के सीनियर पीआई मनीष श्रीधनकर, सतीश तावरे, सहायक पुलिस आयुक्त धारिया, ईओडब्ल्यू के पुलिस निरीक्षक केरकर, सीनियर पीआई जवलकर, महालक्ष्मी गृहनिर्माण सहकारी संस्था के तत्कालीन प्रशासक गणेश डोंगरे, तत्कालीन डेप्युटी रजिस्टार एवं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर भादंवि ,एक्ट्रासिटी एक्ट, संगठित अपराध की धाराओं 120 बी, 182, 192,196,211, 298,420,406,465,467,468,471,34 के तहत कार्रवाई की मांग की थी.
2014 में म्हाडा का सस्ता घर दिलाने वाली गैंग के खिलाफ दर्ज एक मामले में युवराज सावंत को फर्जी केस में फंसाया गया था. उस मामले में सुनीता सौंदर्यतुपे, रमेश चव्हाण, जितेंद्र गाटीया, रवींद्र पाटील व युवराज पाटील-सावंत को पुलिस ने अपराधी बनाया था. उसी मामले में युवराज सावंत की जांच कर सीनियर पीआई रामचंद्र जाधव और एसीपी कदम ने उन्हें क्लीनचिट दी गई थी. लेकिन खार पुलिस अधिकारियों ने फर्जी गवाह खड़ा कर 2018 में उन्हें गिरफ्तार किया था.
युवराज सावंत को न सिर्फ फंसाया बल्कि दो महीने जेल में रखा गया. उल्टे संगठित अपराध करने वाले अनिल जैतापकर व उनके साथी दारों पर तिलक नगर पुलिस में दर्ज विभिन्न गंभीर धाराओं को हटाकर बचाने का काम किया. बहरहाल निर्दोष म्हाडा अधिकारी पर
पुलिसिया रौब दिखाने वाले पुलिस अधिकारियों को भी उसी जेल की कोठरी में जाना होगा. मुंबई पुलिस को ऐसे अधिकारियों की वजह से कलंकित होना पड़ता है.