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बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकार एवं डीजीपी से धार्मिक एवं अन्य स्थानों पर लगाए गए अवैध लाउडस्पीकर का मांगा ब्यौरा

सरकार और डीजीपी को पार्टी बनाने की दी अनुमति

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और डीजीपी को धार्मिक और अन्य स्थानों पर अवैध लाउडस्पीकरों के खिलाफ की गई कार्रवाई का ब्योरा देने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ता का कहना है कि मंदिरों, मस्जिदों, दरगाहों, चर्चों, गुरुद्वारों और बुद्ध विहारों सहित 2,940 धार्मिक संस्थानों ने अवैध रूप से लाउडस्पीकर लगाए हैं. (Bombay High Court sought details from the State government and DGP about illegal loudspeakers installed at religious and other places)

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र के गृह विभाग और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को राज्य भर में विभिन्न धार्मिक और अन्य संस्थानों में लगाए गए अवैध लाउडस्पीकरों के खिलाफ की गई दंडात्मक कार्रवाई का विवरण देने का निर्देश दिया है.

इसने डीजीपी और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को 2,940 अवैध लाउडस्पीकरों के संबंध में की गई कार्रवाई पर एक हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया, जैसा कि याचिकाकर्ता द्वारा आरटीआई के जवाब में स्वीकार किया गया है.

बॉम्बे हाईकोर्ट दायर की गई एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकरों की “अवैध” स्थापना के खिलाफ 2016 में दिए गए निर्देशों का पालन न करने का आरोप लगाया गया था. याचिकाकर्ता संतोष श्रीकृष्ण पचलग ने पहली बार 2014 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें नवी मुंबई की कुछ मस्जिदों में अवैध रूप से लगाए गए लाउडस्पीकरों को हटाने के निर्देश मांगे गए थे.

अगस्त 2016 में, न्यायमूर्ति अभय एस ओक की पीठ ने पचलग की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि कोई भी धर्म या संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता कि लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25  के तहत मौलिक अधिकार है. न्यायालय ने तब ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के सख्त कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए 32 निर्देशों के साथ आदेश पारित किए थे.

दो साल बाद पचलग ने 2016 के फैसले का पालन न करने से दुखी होकर अवमानना ​​याचिका दायर की. उन्हें यह जानकर “हैरानी” हुई कि आरटीआई के जवाब के अनुसार मंदिरों, मस्जिदों और दरगाहों, चर्चों, गुरुद्वारों और बुद्ध विहारों सहित 2,940 धार्मिक संस्थानों ने अवैध रूप से लाउडस्पीकर लगाए थे.

पचलग ने कहा कि यह अगस्त 2016 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है और इससे आम जनता, खास तौर पर बुजुर्ग और बीमार लोगों, छात्रों, शिशुओं और पक्षियों और जानवरों को परेशानी और झुंझलाहट होती है. इससे भारी ध्वनि प्रदूषण भी हो रहा है. उन्होंने कहा कि प्रतिवादी अधिकारी न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के तहत दंड के लिए उत्तरदायी हैं.

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को वर्तमान डीजीपी और राज्य गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पक्षकार बनाने की अनुमति दी और उन्हें नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब मांगा.

अदालत ने दोनों को निर्देश दिया कि वे छह सप्ताह के भीतर अलग-अलग हलफनामे दाखिल करें, जिसमें 2016 के फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों या कार्रवाई का विवरण हो.

हाईकोर्ट ने अधिकारियों से हलफनामे में अवैध लाउडस्पीकर लगाने के खिलाफ शुरू की गई जिलावार दंडात्मक कार्रवाई का विवरण देने को भी कहा. उसने याचिकाकर्ता से इसके बाद जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद तय की.

 

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