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मुंबई पुलिस कमिश्नर के निर्णय से बाल कल्याण आयोग ने नाराज

आदेश वापस करने के लिए लिखा पत्र

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. मुंबई पुलिस आयुक्त संजय पांडेय ने हाल ही में पॉक्सो या छेड़छाड़ का मामला दर्ज करने से पहले डीसीपी स्तर के अधिकारियों की अनुमति लेने का आदेश निकाला था. बाल कल्याण आयोग ने इस आदेश पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर (Child Welfare Commission angry with decision of Police Commissioner) करते हुए पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर आदेश को वापस लेने की मांग की है.
  मुंबई के पुलिस कमिश्नर संजय पांडे ने पॉक्सो, रेप और छेड़छाड़ का मामला पुलिस स्टेशनों में दर्ज करन से पहले डीसीपी की अनुमति से जांच करने का निर्देश दिया था. बाल कल्याण आयोग ने इस आदेश को वापस लेने का निर्देश दिया है. बाल कल्याण आयोग ने कहा है कि संजय पांडेय द्वारा जारी आदेश अवैध है और इसे दो दिन के भीतर वापस लिया जाना चाहिए. इस संबंध में पुलिस आयुक्त संजय पांडेय को तीन पेज का पत्र भेजा गया है. आयोग ने यह भी कहा कि पांडे द्वारा जारी आदेश के कारण बाल पीड़ितों के साथ अन्याय हो सकता है. उनके सुझाव के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पुलिस आयुक्त संजय पांडेय आदेश को वापस लेंगे?
   मुंबई के पुलिस आयुक्त संजय पांडे ने हाल ही में एक आदेश जारी कर कहा था कि पुराने या संपत्ति के विवाद के कारण थाने में पॉक्सो या छेड़छाड़ की शिकायतें दर्ज की गई हैं. ऐसे फर्जी केस दर्ज कराए जाने के कारण में अक्सर आरोपी बरी हो जाता है. लेकिन उसकी रिहाई  तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. संबंधित व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और मान सम्मान धूल में मिल गई होती है.
 पुलिस स्टेशनों में इस तरह का मामला सामने आने के बाद एसीपी ऐसी किसी भी शिकायत की पहले जांच करेंगे और फिर डीसीपी अंतिम आदेश जारी करेंगे. इसके बाद ही केस दर्ज किए जा सकते हैं. पोक्सो के गलत इस्तेमाल को लेकर यह फैसला लिया गया है. पुराने झगड़े, संपत्ति विवाद, रंजिश जैसे विभिन्न कारणों से थाने में झूठी शिकायत दर्ज कराई गई है. पूछताछ के बाद आरोपी निर्दोष पाया जाता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. आदेश में यह भी कहा गया है कि ऐसे मामले में आरोपी की बुरी तरह बदनामी होती.
आयोग पत्र पर विचार करेंगे आयुक्त 
बाल कल्याण आयोग का पत्र मिलने के बाद पुलिस आयुक्त संजय पांडे  ने ट्वीट कर कह कि पिछले हफ्ते व्यस्त रहा. कुछ मामलों की जांच के लिए हमारे परिपत्र के बारे में कुछ गलतफहमी प्रतीत होती है. हमने दुरुपयोग को दूर करने की कोशिश की लेकिन अगर बहुमत को लगता है तो हम निश्चित रूप से फिर से विचार करेंगे.एक सवाल के जवाब में आयुक्त ने कहा कि हम  अवश्य विचार करेंगे. वास्तव में यदि कोई गलत अपराध दर्ज हो जाता है तो उसे बंद करने की प्रक्रिया बहुत कठिन है. यहां यही मुख्य कारण था. जांच का मतलब कभी दिन या सप्ताह नहीं था. अधिकांश मामले सभी एक ही स्थान पर बैठते हैं. Acp, sr pi और Dcp तो वैसे भी बस कुछ  घंटे में ही हो सकते हैं.

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