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शिवसेना की हालत हो गई ऐसे ‘ ना खुदा ही मिले ना बिसाले सनम’

भाजपा ने चुका लिया मनपा का बदला

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस (Why People Sey Fadnvis Chanakya) को यूं ही चाणक्य नहीं कहा जाता. भले ही पार्टी के दबाव में उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार किया है लेकिन शिवसेना को तोड़न  के एक तीर से इतने निशाने साध कर शिवसेना को कहीं का नहीं छोड़ा. आज शिवसेना की हालत ऐसी हो गई है जिस पर यह कहावत खूब चरितार्थ हो रही है कि ‘ ना खुदा ही मिले, ना बिसाले सनम’. शिवसेना के भीतर बगावत का बीज बो कर उसके हाथ से मुख्यमंत्री पद तो छीना ही, राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के हाथ से विपक्ष के नेता पद के लायक भी नहीं छोड़ा. ऐसा कर भाजपा ने मुंबई महानगरपालिका में हुए  ( BJP paid the revenge of BMC) अपमान का बदला भी चुका लिया है.
मनपा में विरोध नेता पद से किया था मरहूम 
 दरअसल मुंबई महानगर पालिका 25 वर्षों तक शिवसेना के साथ गठबंधन में रही भाजपा ने मनपा चुनाव शिवसेना से अलग लड़ा था. वर्ष 2017 के चुनाव में शिवसेना को 84 और भाजपा को 82 सीटें मिली थीं. शिवसेना के पास मनपा में बहुमत नहीं था. निर्दलीयों को मिला कर उसने महापौर तो बना लिया. भाजपा ने भी इस उम्मीद में बाहर से समर्थन दे दिया था कि राज्य में शिवसेना भाजपा की युति हो जाएगी. हालांकि भाजपा ने ऐलान कर दिया कि वह किसी समिति के अध्यक्ष का पद स्वीकार नहीं करेगी. इसके बाद 32 नगरसेवकों वाली कांग्रेस को मनपा विरोधी दल का नेता पद मिल गया क्योंकि भाजपा ने भविष्य में मनपा की सत्ता में साथ आने का विकल्प भी खुला रखा था.
 शिवसेना ने राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा को किनारे कर दिया और राष्ट्रवादी, कांग्रेस के महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली. राज्य में महाविकास आघाड़ी सरकार बनने पर शिवसेना को अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस, राष्ट्रवादी और सपा का सहयोग मिलता रहा. भाजपा के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार देवेंद्र फडणवीस को विपक्ष में बैठना पड़ा तो मनपा में चौकीदार की भूमिका निभाने वाली भाजपा ने विपक्ष के नेता पद पर दावा ठोक दिया. उसके दावे को महापौर किशोरी पेडणेकर ने  खारिज कर दिया. जिसके खिलाफ भाजपा कोर्ट पहुंची तो वहां से भी निराशा हाथ लगी. मनमसोस कर रह गई भाजपा के हाथ मनपा में कुछ भी नहीं लगा. समितियों में जब वोटिंग की बारी आती थी तो राष्ट्रवादी खुल कर शिवसेना का साथ देती थी, जबकि कांग्रेस या तो वॉक आउट कर जारी थी या कुछ विषयों पर मौन रहती थी. महाविकास आघाड़ी दलों के अप्रत्यक्ष सहयोग से पांच साल तक सभी समितियों और महापौर का पद शिवसेना के पास रहा.
शिवसेना के हाथ से छिना विरोध पक्ष नेता का पद 
 महाराष्ट्र में अब वही हाल शिवसेना का हो गया है. शिवसेना के हाथ से मुख्यमंत्री पद तो छिन ही गया दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना के हाथ विरोधी नेता का पक्ष भी नहीं रहा. शिवसेना की टूट का फायदा राष्ट्रवादी कांग्रेस ने उठा लिया है. तीसरे नंबर की पार्टी होने के कारण अब पद उसके पाले में आने वाला है. राष्ट्रवादी अब यह मंथन कर रही है कि इस पद पर उपमुख्यमंत्री रहे अजीत पवार को बिठाए या राज्य में कैबिनेट मंत्री एवं महाराष्ट्र राष्ट्रवादी कांग्रेस अध्यक्ष जयंत पाटील को बिठाए.
चुन-चुन कर लिया बदला 
इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भाजपा नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी विभाजन से आहत ठाकरे ने कहा कि भाजपा का आज उपमुख्यमंत्री बना है. हमने तो पहले ही ढ़ाई -ढ़ाई साल मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया था. अमित शाह हमारी बात मानते तो आज महाराष्ट्र में उनका मुख्यमंत्री होता. अब चाहे कोई कुछ भी कहे लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने ढ़ाई साल में हुए धोखे का चुन -चुन कर शिवसेना से बदला लिया है. भाजपा का अगला मिशन मुंबई महानगर पालिका है. मनपा का कार्यकाल खत्म हो चुका है. राज्य की बागडोर भी अब उसके हाथ में चली गई है. एशिया की सबसे समृद्ध महानगर पालिका से यदि शिवसेना सत्ता से बाहर होती है तो उसका भविष्य ही अंधकार में पड़ जाएगा.

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