शिवसेना विवाद के वो तीन प्रमुख मुद्दे जहां मात खा गया ठाकरे गुट

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. महाराष्ट्र की प्रमुख पार्टी शिवसेना में विभाजन के बाद से उद्धव और शिंदे गुट चुनाव आयोग,सुप्रीम कोर्ट से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे. आज विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया. इससे उद्धव गुट जहां आगबबूला है वहीं विपक्षी पार्टियां कह रही हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष होने के कारण यह परिणाम आना अपेक्षित था. वे सुप्रीम कोर्ट जाने का सुझाव दे रहे हैं.पार्टी बचाने के लिए उद्धव गुट के पास सुप्रीम कोर्ट के अलावा अब सभी रास्ते बंद हो चुके हैं. उद्धव गुट ने कहा कि वे कोर्ट जाएंगे. लेकिन ठाकरे गुट की हार में कुछ प्रमुख मुद्दे ऐसे रहे जहां वे मात खा गए. (Major issues of Shiv Sena dispute where Thackeray faction lost)
विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे द्वारा पैदा किया (Rahul Narvekar) गया भ्रम उनके गले तक आ गया है. राहुल नार्वेकर का फैसला सुनते समय मन यही लगा कि पिछली शिवसेना एक पार्टी के तौर पर कितनी कमजोर और गैरजिम्मेदार थी. पार्टी में कोई लोकतंत्र नहीं था लेकिन सभी को लोकतंत्र के नियमों का पालन करना होगा.
नार्वेकर ने कहा ठाकरे के कार्यकर्ताओं को इस नतीजे को भावनात्मक नहीं, बल्कि वास्तविकता की नजर से देखना चाहिए. संविधान की समझ रखने वाले विशेषज्ञों की राय में यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की अपील में भी मान्य होगा. कानून की जटिलताओं से बचते हुए बहुत ही सरलता से समझें कि क्या है फैसला.
1. पार्टी का संविधान : पार्टी का संविधान क्या कहता है कि कौन सी पार्टी सच्ची है और कौन सी पार्टी झूठी है, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा था. यूबीटी गुट ने कहा कि 2018 में संविधान में कुछ बदलाव किए गए जिसके तहत सारी शक्तियां उद्धव ठाकरे को दे दी गईं, यहां तक कि किसी को निष्कासित करने की भी. पार्टी के संविधान में किए गए बदलावों को अलमारी में नहीं रखा जाता, बल्कि इसकी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. हैरानी की बात यह है कि इन बदलावों की जानकारी आयोग को नहीं दी गई. जब नार्वेकर ने आयोग से इस बारे में पूछा तो आयोग ने अपने पास मौजूद पुराना संविधान भेजा जो 1999 का था. इसलिए 2018 में किए गए सभी बदलावों का ध्यान में नहीं रखा गया और यूबीटी गुट के दावों की जांच पुराने संविधान के नजरिए से की गई.
2. नेतृत्व संरचना : एक और महत्वपूर्ण मुद्दा नेतृत्व संरचना है, क्योंकि असली शिवसेना का फैसला इसी पर होता है. 2018 की घटना और 1999 की घटना में बहुत बड़ा अंतर था. ऊपर बताए गए कारण के चलते 2018 की घटना को अमान्य यानी अविश्वसनीय घोषित कर दिया गया. 1999 के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय कार्यकारिणी को पार्टी प्रमुख से अधिक महत्व दिया गया था. पार्टी नेता को जो भी निर्णय लेना होता है, उस पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी से चर्चा करना अनिवार्य है. जिसकी यहां चर्चा नहीं की गई. इसीलिए पार्टी प्रमुख को कभी भी अपने निजी फैसले के आधार पर किसी को हटाने का अधिकार नहीं है. उद्धव गुट राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ एक भी बैठक का प्रमाण नहीं दे सका. दिए गए सबूत स्पष्ट रूप से नकली थे. कोई हस्ताक्षर नहीं था. इसमें केवल विनायक राऊत और अरविंद सावंत के हस्ताक्षर थे. कमाल की बात ये है कि ये दोनों राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नहीं हैं. इससे भी दिलचस्प बात यह है कि उस फर्जी कागज को ध्यान में रखते हुए, बैठक सेना भवन में आयोजित की गई जबकि उद्धव ठाकरे ने कहा कि यह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई थी.
3. पार्टी का बहुमत : 2018 का नेतृत्व ढांचा 1999 के पार्टी के आधिकारिक संविधान के अनुरूप नहीं था और पार्टी प्रमुख की शक्तियां स्पष्ट नहीं थीं, इसलिए ऐसा महसूस किया गया कि पार्टी नेतृत्व का वोट, पार्टी के वोट का निर्धारण नहीं कर सकता. तब ऐसी स्थिति में उसका वोट जिस पार्टी के पक्ष में होगा उस पार्टी का बहुमत एक तार्किक मुद्दा बन जाता है. इसमें कोई शक नहीं कि शिंदे के पास बहुमत था. तो शिंदे गुट असली शिवसेना बनकर सामने आता है. स्वाभाविक रूप से, सुनील प्रभु नहीं बल्कि भरत गोगावले प्रतोद के रूप में मान्य हुए.
शिंदे गुट अयोग्य क्यों नहीं : शिंदे गुट की अयोग्यता के मुद्दे का भी अच्छे से विश्लेषण किया गया. चूंकि उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया गया था, इसलिए वह विश्लेषण यहां नहीं लिखा गया है. लेकिन पार्टी के आदेश को क्रियान्वित करते समय जिन बातों का ध्यान रखना होता है, जिन बातों को मानना होता है, जिस प्रकार उद्धव गुट ने नियमों का पालन नहीं किया, शिंदे गुट ने भी नहीं किया, इसलिए उद्धव गुुट को भी पार्टी अनुशासन के उल्लंघन का दोषी नहीं ठहराया गया.
निर्णय से बच गए ये विधायक: विधायकों की अयोग्यता को लेकर फैसला आया है, उनके नाम- सीएम एकनाथ शिंदे, रोजगार मंत्री संदिपानराव भुमरे, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. तानाजी सावंत, अल्पसंख्यक विकास मंत्री अब्दुल सत्तार, भरत गोगावले, संजय शिरसाट और यामिनी जाधव हैं. इसके अलावा अनिलभाऊ बाबर, डॉ. किनिकर बालाजी प्रल्हाद, प्रकाश सुर्वे, महेश शिंदे, लता सोनवणे, चिमणराव रूपचंद पाटिल, रमेश बोरनारे, डॉ. संजय रायमुलकर और बालाजी कल्याणकर हैं.




