40 साल में वायु प्रदूषण ने ली 13.5 करोड़ की जान, सिंगापुर यूनिवर्सिटी के रिसर्च में सनसनीखेज खुलासा
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
एशिया में बढ़ रहे वायु प्रदूषण से बीते 40 वर्षों में चीन और भारत में 13.5 करोड़ लाेगों की जान चली गई. यह सनसनीखेज खुलासा सिंगापुर की नैंनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की रिसर्च में यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है. रिसर्च में कहा गया है कि अलनीनो और इंडियन ओशन डाइपोल जैसे मौसमी प्रभावों ने हवा में प्रदूषकों की सघनता को बढ़ा कर प्रदूषण के प्रभाव को और गहरा कर दिया है। पीएम 2.5 कहे जाने वाले अति सूक्ष्म कण जो हवा में बने रहते हैं सांस के साथ इंसान के शरीर में जाकर उनकी सेहत खराब कर रहे हैं.(Air pollution has killed 13.5 crore people in 40 years, sensational revelation in research by Singapore University)
पर्यावरण जर्नल एनवायर्नमेंटल इंटरनेशनल में छपी रिपोर्ट पर दिए गए बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा है कि पीएम 2.5 कण बहुत महीने होते हैं जो आंखो से दिखाई नहीं देते. यह महीन कण 1980 से 2020 के बीच चीन और भारत में 13.5 करोड़ लोगों की मौत से जुड़े हैं. रिसर्च में पाया गया है कि संभावित औसत आयु से पहले बीमारियों और अन्य परिस्थितियों की वजह से लोगों की मौत हो रही है. इन मौतों को रोका जा सकता था। महीन कणों के कारण हार्ट अटैक, दिल और फेफड़े की बीमारी, कैंसर जैसे रोग हो रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार बदलते मौसम ने मौतों में 14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. एशिया मे पीएम 2.0 की वजह से सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं. इससे करीब 9.8 करोड़ लोग असमय काल के ग्रास बन गए हैं. वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें चीन और भारत में हुई हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और जापान में भी बड़ी संख्या में अकाल मृत्यु दर्ज की गई है. इन देशों में अकाल मृत्यु का आंकड़ा 20 से 50 लाख है. रिपोर्ट में बताया गया है कि यह हवा की गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन पर हुई अब तक किए गए सबसे विस्तृत अध्ययन से निकल कर सामने आया है.
सिंगापुर में हुए इस शोध में रिसर्चरों ने अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा यानी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के उस सैटेलाइट डाटा का अध्ययन किया जो धरती के पर्यावरण में पार्टिक्युलेट मैटर के स्तर से जुड़ा है. अमेरिका के ही एक स्वतंत्र शोध संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स और इवैल्यूएशन के प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के चलते हुई मौतों के आंकड़ों की भी स्टडी की. मौसमी पैटर्न से जुड़ी सूचनाएं नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन से ली गईं. इस शोध में सिंगापुर की यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बनाने में हांगकांग, ब्रिटेन और चीन के रिसर्चर भी शामिल रहे.