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दिपावली पर जाने लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजन की विधी
इस दिवाली बन रहा पांच शुभ मुहूर्त

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. आज दीपावली है इस दिपावली पर कब करें लक्ष्मी पूजन और उसका मुहुर्त क्या है आप समझ लेंगे तो पूजन आसान हो जाएगा. इस दीपावली पांच शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. (Know the auspicious time and method of worshiping Lakshmi on Diwali/
पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर दिवाली का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दिवाली लक्ष्मी, गणेश और कुबेर पूजन का विशेष पर्व होता है. पांच दिवसीय दीपोत्सव धनतेरस से शुरू होता है. नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा और आखिरी दिन भाई दूज के साथ समाप्त होता है. वैदिक शास्त्र की गणना के अनुसार इस साल कई दशकों बाद दिवाली पर एक साथ कई शुभ योग और पांच राजयोग का निर्माण हुआ है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या 12 नवंबर रविवार को दोपहर 02:44 बजे शुरू होगी और अगले दिन 13 नवंबर सोमवार को दोपहर 02:56 बजे इसका समापन होगा. दिवाली पर प्रात:काल से आयुष्मान योग है, जो शाम 04:25 बजे तक रहेगा। उसके बाद से सौभाग्य योग प्रारंभ होगा, जो अगले दिन दोपहर 03:23 बजे तक है. ये दोनों ही शुभ योग हैं. स्वाति नक्षत्र प्रात:काल से लेकर 13 नवंबर को सुबह 02:51 बजे तक है उसके बाद विशाखा नक्षत्र प्रारंभ होगा. इस बार दिवाली पर लक्ष्मी पूजा सौभाग्य योग और स्वाति नक्षत्र में होगी.
दिवाली और शुभ योग
दिवाली की शाम लक्ष्मी पूजा के दौरान 5 राजयोग का निर्माण भी होगा. इन पांच राजयोग में गजकेसरी, हर्ष, उभयचरी, काहल और दुर्धरा नाम का समावेश है. इन राजयोगों का निर्माण शुक्र, बुध, चंद्रमा और गुरु ग्रह स्थितियों के कारण बनेंगे. ज्योतिष शास्त्र में गजकेसरी योग को बहुत ही शुभ माना जाता है. यह योग मान-सम्मान और लाभ देने वाला साबित होता है। वहीं हर्ष योग धन में वृद्धि और यश दिलाता है. जबकि बाकी काहल, उभयचरी और दुर्धरा योग शुभता और शांति दिलाता है. वहीं कई सालों बाद दिवाली पर दुर्लभ संयोग भी देखने को मिलेगा जब शनि अपनी स्वयं की राशि कुंभ में विराजमान होकर शश महापुरुष राजयोग का निर्माण करेंगे. इसके अलावा दिवाली पर आयुष्मान और सौभाग्य योग का निर्माण भी होगा. इसके अलावा आयुष्मान, सौभाग्य और महालक्ष्मी योग भी बनेगा. इस तरह से दिवाली 8 शुभ योगों में मनाई जाएगी. दीपावली पर इस तरह का शुभ योग कई दशकों के बाद बना है. ऐसे में इस शुभ योग में दिवाली सभी के लिए सुख-समृद्धि और मंगल कारी साबित होगी.
दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजा का मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त शाम 05:40 से शाम 07:36 बजे तक
प्रदोष काल- 05:29 से 08:07 तक
वृषभ काल- 05:40 से 07:36 तक
दिवाली महानिशीथ काल पूजा मुहूर्त
महानिशीथ काल- 11:39 से 12:31 तक
सिंह काल- 12:12 से 02:30 तकदिवाली शुभ चौघड़िया पूजा मुहूर्त
सिंह काल- 12:12 से 02:30 तकदिवाली शुभ चौघड़िया पूजा मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त (शुभ)- 01:26 से 02:47 तक
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चल)- 05:29 से 10:26 तक
रात्रि मुहूर्त (लाभ)- 01:44 से 03:23 तक
उषाकाल मुहूर्त (13 नवंबर) (शुभ)- 05:02 से 06:41 तक
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चल)- 05:29 से 10:26 तक
रात्रि मुहूर्त (लाभ)- 01:44 से 03:23 तक
उषाकाल मुहूर्त (13 नवंबर) (शुभ)- 05:02 से 06:41 तक
चर : सुबह 8:01 से 9:23 और रात 8:53 से 10;30 बजे तक
अमृत: सुबह 10:47 से दोपहर 12:08 और शाम 7:15 से 8:53 बजे तक
शुभ : दोपहर 01:30 से 2:53 और शाम 5:37 से 7:14 बजे तक
लाभ: सुबह 9:24 से 10:46 और रात 1:46 से 3:24 बजे तक
पूजन के लिए शुभ स्थिर लग्न
वृश्चिक : सुबह 07:02 से 09:18 बजे तक
कुम्भ : दोपहर 01:10 से 02:43 बजे तक
वृषभ : शाम 05:55 से 07:53 बजे तक
सिंह : रात 12:22 से 02:34 बजे तक
शुभ अभिजीत मुहूर्त
सुबह 11:44 से दोपहर 12:32 बजे तक
शुभ प्रदोष काल
शाम 05:37 से 07:48 बजे तक
लक्ष्मी पूजा विधि | Laxmi Pooja
Vidhi Mantra Sahit
दिवाली के दिन पूजन से पूर्व पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें.
इसके बाद घर को अच्छे तरीके से सजाएं और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं.
घर के मुख्य दरवाजे पर तोरण द्वार से सजाएं और दरवाजे के दोनों तरफ शुभ-लाभ और स्वास्तिक का निशान बना दें.फिर शाम होते ही पूजा की तैयारी में लग जाएं. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और उसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर गंगाजल का छिड़काव करते हुए देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश की प्रतिमा के साथ मां सरस्वती और कुबेर देवता की प्रतिमा स्थापित करें.
सभी तरह के पूजन सामग्री को एकत्रित कर चौकी के पास जल से भर कलश रख दें.
Vidhi Mantra Sahit
दिवाली के दिन पूजन से पूर्व पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें.
इसके बाद घर को अच्छे तरीके से सजाएं और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं.
घर के मुख्य दरवाजे पर तोरण द्वार से सजाएं और दरवाजे के दोनों तरफ शुभ-लाभ और स्वास्तिक का निशान बना दें.फिर शाम होते ही पूजा की तैयारी में लग जाएं. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और उसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर गंगाजल का छिड़काव करते हुए देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश की प्रतिमा के साथ मां सरस्वती और कुबेर देवता की प्रतिमा स्थापित करें.
सभी तरह के पूजन सामग्री को एकत्रित कर चौकी के पास जल से भर कलश रख दें.
महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएं और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें।श. इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजन करें.
पवित्रकरण :
पवित्रकरण :
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।
यह बोलकर हाथ धो लें ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
आसन:
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़केंॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥
आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुमकुम से पूजन करें
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।
यह बोलकर हाथ धो लें ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
आसन:
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़केंॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥
आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुमकुम से पूजन करें
दीप देवि महादेवि शुभं भवतु मे सदा ।
यावत्पूजा-समाप्तिः स्यातावत् प्रज्वल सुस्थिराः ॥
( पूजन कर प्रणाम करें)
स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें
यावत्पूजा-समाप्तिः स्यातावत् प्रज्वल सुस्थिराः ॥
( पूजन कर प्रणाम करें)
स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टृनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टृनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः
शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः
शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥