स्लम मुक्त महाराष्ट्र योजना में आएगी तेजी, अधिनियम में संशोधन को दी मंजूरी, झुग्गी बस्ती घोषित होने के 60 दिन के भीतर प्रस्तुत कर सकेंगे पुनर्वास प्रस्ताव

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई। महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक (Maharashtra Cabinet) में राज्य में स्लम पुनर्वास में तेजी लाने और महाराष्ट्र को स्लम मुक्त बनाने के लिए महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र सुधार और पुनर्वास अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी गई। (Slum free Maharashtra scheme will gain momentum)
बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने की। महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, उन्मूलन और पुनर्वास) अधिनियम-1971 के तीन प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा। किसी झुग्गी-झोपड़ी वाली भूमि को झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद, भूमि मालिक, डेवलपर या सहकारी समिति को 120 दिनों के भीतर भूमि के लिए पुनर्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करना होता था। यह अवधि अब घटा कर 60 दिन कर दी जाएगी। यदि संबंधित पक्ष इन 60 दिनों के भीतर प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो स्लम क्षेत्र को पुनर्विकास के लिए किसी अन्य प्राधिकरण को सौंप दिया जाएगा। इस संबंध में धारा 15(1) में सुधार किया जाएगा।
मुंबई महानगर क्षेत्र में झुग्गी पुनर्वास योजना सरकार, अर्ध-सरकारी संस्थाओं, प्राधिकरणों या स्थानीय निकायों द्वारा संयुक्त भागीदारी के आधार पर कार्यान्वित की जा रही है। तो यह भूमि अब उन्हें योजना के लिए आशय पत्र जारी होने के 30 दिनों के भीतर 30 साल के पट्टे पर उपलब्ध कराई जाएगी। ताकि इस योजना के क्रियान्वयन के लिए बैंकों या वित्तीय संस्थाओं से ऋण एवं वित्तीय सहायता प्राप्त करना संभव हो सके । यह संशोधन धारा 15-ए में किया जाएगा।
किराया रोकने वाले बिल्डरों पर कानून शिकंजा
झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास योजनाओं और परियोजनाओं में स्वेच्छा से भाग नहीं लेने वाले झुग्गी-झोपड़ी वासियों के साथ व्यवहार करने में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को अब धारा 33-ए में विस्तारित किया जा रहा है। झुग्गी पुनर्वास योजनाओं में झुग्गीवासियों को अस्थायी आश्रय के स्थान पर किराया उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन डेवलपर्स झुग्गीवासियों को यह किराया समय पर नहीं दे रहे हैं। उनका बकाया बढ़ता जा रहा है। अधिनियम में एक नई धारा 33-बी शामिल की जाएगी, जिससे ट्रांजिट कैंप का किराया या अन्य बकाया डेवलपर से वसूलने के लिए कानूनी प्रावधान किए जा सकेंगे। इसमें डेवलपर से बकाया किराए की वसूली राजस्व अधिनियम के अनुसार की जाएगी।