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व्यापक संभावनाओं के द्वार खोलते हैं पत्रकारिता व अनुवाद के क्षेत्र : डॉ. कृपाशंकर पाण्डेय

राष्ट्र निर्माण का जज्बा भाषाई पत्रकारिता ने संभाला

मुंबई के एस. आई. ई.एस.महाविद्यालय में दो दिवसीय संगोष्ठी संपन्न

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

मुंबई. पत्रकारिताव अनुवाद व्यापक संभावनाओं के द्वार खोलते हैं. पत्रकारिता व अनुवाद (Journalism and translation) के क्षेत्र हमारे युवाओं को इन क्षेत्रों से जुड़े विभिन्न कौशलों का विकास कर इन क्षेत्रों से जुड़ना चाहिए. हिन्दी पत्रकारिता भारतेन्दु काल से ही राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाते हुए जनसरोकारों की लड़ाई लड़ रही है. आज पत्रकारिता जब प्रोफेशन बन चुकी है तब भी भाषाई पत्रकारिता अपने राष्ट्र निर्माण के जज्बे को बनाए रखने में सफल रही है. आनेवाले दिनों में हमारे युवाओं को कौशल विकास के द्वारा इस पेशे में अपने लिए रोजगार की न सिर्फ अनेक संभावनाओं को तलाशना है बल्कि उन्हें पत्रकारिता से जुड़े मूल्यों व मानवीय सरोकारों के चिंतन का भी ख्याल रखना होगा. अनुवाद का क्षेत्र रोजगार के साथ –साथ सांस्कृतिक विकास व राष्ट्रीय एकता के लिए भी आवश्यक है

उपरोक्त विचार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कृपाशंकर पाण्डेय (Dr.Kripashankar Pandey) ने व्यक्त किये.  रुसा द्वारा संपोषित एवं एस. आई. ई. एस. महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये.

‘कौशल को ज्ञान समाज में तब्दील करने की जरुरत’

इस अवसर पर भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. संजय द्विवेदी (Sanjay dwivedi) ने उदघाटकीय संबोधन में कहा कि हमें भारत को सिर्फ बी.पी.ओ. और आउटसोर्सिंग के जरिए तकनीक आधारित विश्वशक्ति नहीं बनाना है, बल्कि उसे एक ज्ञान समाज में तब्दील करना है. तकनीक, भारत में सामाजिक परिवर्तनों तथा आर्थिक विकास का निरंतर चलनेवाला जरिया बन सकती है पर इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय भाषाओं को निभाना होगा. पिछले दशकों में भारतीय भाषाओं का प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ा है, और आनेवालों दिनों में इस प्रभाव के व्यापक व सघन रूप से भारत के कस्बों व शहरों में पड़ता हुआ देखा जा सकेगा. बदली हुई स्थितियों ने भाषाई – पत्रकारिता व अनुवाद के क्षेत्र में बहुआयामी संभावनाओं का निर्माण किया है. इन क्षेत्रों के लिए आवश्यक कौशलों का विकास कर हमारा युवा अपने लिए बेहतर रोजगार की तलाश कर सकता है और भाषाओं की शक्ति से अपने विकास के  साथ – साथ राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.

सोशल मीडिया से रोज जुड़ रहे 10 लाख लोग

पत्रकारिता व अनुवाद में रोजगार के अवसर आवश्यक कौशल एवं चुनौतियाँ विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए डॉ. द्विवेदी ने कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर प्रतिभागियों के ध्यान को आकृष्ट किया. डॉ. द्विवेदी ने कहा कि आज परंपरागत पत्रकारिता के बरक्स डिजिटल पत्रकारिता तेजी से विकसित हो रही है. हूटसूट और वी आर सोशल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दुनियाभर में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या 3 अरब 99 करोड़ हो गई है, जो दुनिया की आबादी की 51 प्रतिशत है. हर दिन 10 लाख यूजर्स सोशल मीडिया से जुड़ रहे हैं. और डिजिटल मीडिया लोकतान्त्रिक संस्कृति के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है. 

डॉ. द्विवेदी ने अनुवाद के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि आज का युग अनुवाद का युग है. आज अनुवाद संगठित व्यवसाय का रूप ले चुका है व रोजगार का व्यापक अवसर युवाओं को उपलब्ध करा रहा है. रोजगार उपलब्ध कराने के साथ- साथ अनुवाद एक सांस्कृतिक सेतु का भी कार्य कर रहा है. भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद की भूमिका असाधारण है. अनुवाद के माध्यम से भारतीय भाषाओं की तमाम रचनाओं को हम देश की अन्य भाषाओं में ले जाकर उन्हें व उनके रचनाकारों को भारतीय भाषाओं की रचनाएं व रचनाकर बना सकेंगे. इस संदर्भ में उन्होंने प्रसिद्ध जर्मन भाषाविद व शिक्षक डॉ. लोठार लुत्से का संदर्भ देते हुए कहा कि डॉ. लुत्से का यह कहना ठीक ही है कि हमें हिन्दी, मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू या कन्नड़ के लेखकों को केवल उनकी भाषाओं के लेखक के रूप में ही नहीं बल्कि भारतीय लेखक के रूप में देखना चाहिए. पत्रकारिता व अनुवाद कौशल तथा रोजगार के अवसरों पर बोलते हुए उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हमें अपनी भाषाओं को और भी रोजगार व संवादपरक बनाने की जरूरत है.

दो दिनों में अलग-अलग छ: सत्रों के अंतर्गत  सुंदरचंद ठाकुर, डॉ.  शुचि यादव,  भूवनेंद्र त्यागी, रुना आशीष, हरीश पाठक, डॉ. सतीश पाण्डेय, डॉ. रवीन्द्र कात्यायन, डॉ. बालकवि सुरंजे,  प्रदीप चतुर्वेदी, रमेश यादव, डॉ. हूबनाथ पाण्डेय, डॉ. उषा मिश्रा, रमाकांत शर्मा, ललित छाजेड जैसे विद्वानों ने अपने विचारों व पीपीटी प्रस्तुतियों द्वारा विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया. संगोष्ठी में देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों व मुंबई महानगर के अनेक महाविद्यालयों के अध्यापक, शोधार्थी व रचनाकार बड़ी संख्या में उपस्थित रहे. अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. उमा एम शंकर ने तथा परिचय हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश पाठक ने दिया. आयोजन  को सफल बनाने में हिन्दी विभाग के प्राध्यापकों करुणानिधि राय व अंजनीकुमार द्विवेदी का विशेष योगदान रहा. इस अवसर पर विद्यार्थियों के अलावा अन्य महाविद्यालयों के प्राध्यापक भी उपस्थित रहे.

 

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