हे, भागवत जी पंडितों को बदनाम करके क्या मिला, श्रीमद् भागवत गीता पढ़ लेते
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है चारों वर्ण हमने बनाया

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS) के सरसंघचालक मोहनराव भागवत जी (Mohan Bhagwat) के उस बयान पर कि ‘वर्ण भगवान ने नहीं पंडितों ने बनाया’ पर ब्राह्मण वर्ग आक्रोशित है. रामचरित मानस पर तर्क चल ही रहे थे कि भागवत के बयान पर नया तर्क-वितर्क शुरू हो गया है. हर जगह इसी बात की चर्चा चल रही है कि आखिर सच क्या है. आरएसएस और भाजपा के साथ जुड़ने वाले ब्राह्मण समाज के लोग भी उनके इस बयान से मर्माहत हैं. इसलिए कि ब्राह्मण हमेशा ईश्वर द्वारा वर्णित, निरूपित कथनों को आगे बढ़ाते रहे हैं. फिर अचानक समाज के पंडितों को दोषी क्यों ठहरा दिया गया.
भागवत जी के बयान पर आरएसएस ने सफाई में कहा कि पंडित का मतलब विद्वान से था, पांडित्य का अर्थ विद्वान ही होता है लेकिन जिस परिपेक्ष्य में सम्माननीय भागवत जी ने कहा उसके अर्थ अलग थे. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहा है, “चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुण कर्म विभागश:” गीता ४:१३ अर्थात गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक चारों वर्ण ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ) मेरे द्वारा रचा गया है.
जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि चारों वर्ण मेरे द्वारा रचा गया है तो पंडितों को बदनाम क्यों कर रहे हैं. पंडित हो या पांडित्य जो वेदों, शास्त्रों, उपनिषदों में वर्णित है उसी के अनुसार आचरण करते हैं. फिर अनायास लांक्षित कर देना कि यह पंडितों का कथन है उचित नहीं है.

एक और उदाहरण है श्रीमद्भागवत गीता १८.४१ ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप:। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभयैर्गुणे।। अर्थात हे परंतप: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के अनुसार विभक्त किए गए हैं.
यह दो ऐसे उदाहरण हैं जो यह साबित करते हैं कि वर्ण व्यवस्था पंडितों की नहीं स्वयं परमपिता परमेश्वर की रचना है. तो क्या गीता में वर्णित श्लोकों को भी आप झुठला देंगे. आप सनातन की बात करते हैं. ब्राह्मण या पंडित सनातन से अलग तो नहीं?
भागवत जी, आप ईश्वर रचित वर्ण व्यवस्था को भंग करना चाहते हैं तो कर दीजिए, केंद्र में आपकी सरकार है वर्ण और जाति व्यवस्था खत्म करने के लिए कानून लाइए, लेकिन कम से कम पंडितों को बदनाम तो मत कीजिए. आप चाहें तो सनातनियों के सभी संस्कार पर भी रोक लगवा दीजिए.
रामचरित मानस पर खुद को बुद्धिजीवी कहने वाले सवाल उठा रहे हैं. ढ़ोल गवॉंर शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। जिन्हें गोस्वामी तुलसीदास की इस चौपाई का अर्थ भी नहीं पता. रामचरित मानस अवधी भाषा में लिखी गई है. अवधी भाषा में ताड़ना का अर्थ निरंतर देखना होता है, देखभाल होता है. तथाकथित बुद्धिजीवी इसे राजनीतिक चश्मे से प्रताड़ना से जोड़ कर रोटी सेंक रहे हैं. रामचरित मानस पर उठे सवाल को आगे बढ़ाते हुए अपने तो श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित कथन को पंडितों से जोड़ कर आप पूरे ब्राह्मण समाज को दोषारोपित कर दिया.




