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पत्राचाल का संपूर्ण इतिहास जिसको लेकर अटकी संजय राउत की सांस

इनसाइट न्यूज स्टोरी की विशेष रिपोर्ट

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

मुंबई.  मुंबई के गोरेगांव स्थित पत्राचाल घोटाले में शिवसेना सांसद संजय राउत की संलिप्तता के कारण देश की सुर्खियां (Entire history of Patrachaal of goregaon) बन चुका है. ईडी की हिरासत में शिवसेना के फायर ब्रांड नेता संजय राउत सांसे अटकी हुई हैं. इनसाइट न्यूज स्टोरी ने पत्राचाल के बनने और घोटाले तक पूरे इतिहास की पड़ताल पाठकों के लिए लेकर आया है जो अब तक इस बात से अनजान हैं कि आखिर पत्राचाल क्या बला है जिसको लेकर बवाल मचा हुआ है.

देश के आजाद होने के बाद वर्ष 1948 में बॉम्बे हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट बोर्ड गोरेगांव (पश्चिम), को मुंबई में 1,65,800 वर्ग मीटर के बराबर 40 एकड़ भूमि के एक बड़े हिस्से को डेवलपमेंट के लिए सौंपा गया था.  बोर्ड ने वहां पर “पत्रा चॉल” से युक्त 808 सिंगल घरों का निर्माण किया था जिसमें प्रत्येक घर का क्षेत्रफल 220 वर्ग फुट था. यह क्षेत्र अब सिद्धार्थ नगर के रूप में जाना जाता है.  महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण 5 दिसंबर 1977 को अस्तित्व में आया. 1984 में वहां के 663 घरों के निवासियों ने सिद्धार्थ नगर कोऑपरेटिव सोसायटी का गठन किया था. जिसमें 808 निवासियों में से थे. न्यायालय को सूचित वर्तमान में रहने वालों की संख्या 672 है. शेष रहने वालों को विभिन्न अन्य योजनाओं में पुनर्वासित किया गया था.

पत्राचाल का पुनर्विकास करने के लिए  सहकारी समिति ने 9 सितंबर 1986 को लोखंडवाला सोसाइटी एंड डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड – के साथ 13.18 एकड़ के सकल भूमि क्षेत्र को विकसित करने के लिए एक समझौता किया. 8 फरवरी 1988 को महाराष्ट्र सरकार ने एक प्रस्ताव जारी किया जिसके द्वारा यह प्रावधान किया गया कि म्हाडा के स्वामित्व वाली 40 एकड़ भूमि में से 10 एकड़ का शुद्ध क्षेत्र भूमि तल की चालों के 673 रहने वालों का प्रतिनिधित्व करने वाली सहकारी समिति को आवंटित किया जाएगा.

 लोखंडवाला डेवलपर ने 1991-92 में तीन भवनों का निर्माण किया जिसमें एक भूतल और चार ऊपरी मंजिल शामिल हैं. 23 नवंबर 1992 को सहकारी समिति ने डेवलपर के साथ समझौते को समाप्त कर दिया, इस आधार पर कि पहले के डेवलपर ने प्रत्येक रहने वाले के लिए 365 वर्ग फुट के विपरीत 325 वर्ग फुट कालीन क्षेत्र के आवास का निर्माण किया था. डेवलपर और सोसायटी के बीच पहले हाईकोर्ट और फ़िर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चला. वर्ष 1696 में फैसला समिति के पक्ष में आया.

 इसके बाद सहकारी समिति ने 1 सितंबर 2002 को एक नए डेवलपर के साथ एक समझौते में करने करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया. यह कंपनी गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड थी जिस पर घोटाले का आरोप लगा है. दिसंबर 2005 में सहकारी समिति ने 22 जनवरी 2006 को पहले नोट किए गए नए डेवलपर की नियुक्ति के लिए दुबारा एक प्रस्ताव पारित किया. सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा.

सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2006 को डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ पहले डेवलपर की एक विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी. आखिरकार 13 सितंबर 2007 को पहले डेवलपर द्वारा स्थापित मुकदमे में एक सहमति डिक्री पारित की गई जिसके द्वारा सभी अधिकार और देनदारियां पहले के डेवलपर को नए डेवलपर के पक्ष में सौंपा गया था.

नए डेवलपर के साथ त्रिपक्षीय करार 

सोसायटी और उसके नवनियुक्त विकासकर्ता ने 26 सितंबर 2007 को म्हाडा को विकास के लिए एक संयुक्त प्रस्ताव प्रस्तुत किया. म्हाडा ने पुनर्विकास योजना को मंजूरी देते हुए 1 नवंबर 2007 को एक प्रस्ताव जारी किया. 3 मार्च 2008 को राज्य सरकार ने पुनर्विकास को अपनी स्वीकृति प्रदान की. 1 अप्रैल 2008 को सहकारी समिति, नव नियुक्त डेवलपर और म्हाडा के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता किया गया था. मामला फिर न्यायालय पहुंचा. न्यायालय की एक खंडपीठ ने अपने आदेश दिनांक 9 जून 2009 द्वारा मामले को उच्चाधिकार प्राप्त समिति को संदर्भित किया पहले की रिट याचिका 1 फरवरी 2010 को वापस ले ली गई थी. 27 अक्टूबर 2010 को 68 कब्जाधारियों को महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम 1976 की धारा 95 ए के तहत बेदखली का नोटिस दिया गया था. बेदखली का एक आदेश शुरू में पारित किया गया था जिसे वापस ले लिया गया था. और उसके बाद 18 दिसंबर 2010 को एक नया आदेश पारित किया गया. 2 फरवरी 2011 को इस न्यायालय के एक विद्वान एकल न्यायाधीश ने धारा 95 ए के तहत बेदखली के आदेश को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका का निपटारा किया.

गुरूआशीष कंस्ट्रक्शन ने गोरेगांव में पात्र चाल के पुनर्विकास के लिए म्हाडा के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. पत्राचाल में 3 हजार से ज्यादा फ्लैट बनने थे.कुल फ्लैटों में से 672 फ्लैट पत्राचाल के निवासियों को दिए जाने थे, बाकी फ्लैट्स को म्हाडा और गुरूआशीष के साथ साझा किया जाना था. गुरूआशीष कंस्ट्रक्शन प्रायवेट लिमिटेड नाम की कंपनी के खिलाफ म्हाडा ने साल 2018 में शिकायत दर्ज कराई थी.

कंस्ट्रक्शन के लिए बैंकों से लिए गए लोन

सोसायटी को डेवलप करने के लिए डेवलपर ने विभिन्न बैंकों से लोन लिया था. उसमें एक बैंक  पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी)  भी थी जिसमें बड़ा बैंक घोटाला सामने आया था.  6337 करोड़ रुपए के पीएमसी घोटाले में ईओडल्ब्यू ने उसे पिछले साल अक्टूबर महीने में उसके पिता के साथ गिरफ्तार किया था. एचडीआईएल के मालिक सारंग बाधवान , राकेश बाधवान की गुरूआशीष कंसर्न कंपनी थी जो पत्राचाल पुनर्विकास से जुड़ी थी, गुरूआशीष कंस्ट्रक्शन प्रायवेट लिमिटेड के निदेशकों में शामिल सारंग और दूसरे आरोपियों के खिलाफ 120 (बी), 409 और 420  के तहत साजिश और धोखाधड़ी के आरोप में मामला दर्ज किया गया था. कंपनी के एक और निदेशक प्रवीण राऊत को भी इसी साल फरवरी महीने में गिरफ्तार किया गया था. प्रवीण राउत संजय राउत का क़रीब है.

शरद पवार से थी बचाने की उम्मीद

बीजेपी के एक करीबी नेता ने बताया कि ईडी के फेर में फंसे राउत शरद पवार के पत्रा चाल घोटाले से संजय राउत के बचाने के लिए मविआ सरकार ने 672 मूल निवासियों को 672 वर्ग फुट का घर देने के वादे के साथ 22 फरवरी 2022 को तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, रांका अध्यक्ष शरद पवार की उपस्थिति में पुनर्निर्माण का भूमिपूजन किया गया था. लेकिन घोटाले की फेहरिस्त इतनी लंबी थी राउत ईडी के शिकंजे में आ ही गए. बीजेपी के एक करीबी नेता ने बताया कि ईडी के फेर में फंसे राउत शरद पवार के इतने करीब इसलिए आ गए थे क्योंकि गृहनिर्माण विभाग उनकी पार्टी के पास था, पत्राचाल का पुनर्विकास कर बचना चाहते थे. शरद पवार से बचाने की उम्मीद थी लेकिन सरकार गिर गई और सभी बेबस हो गए.

 

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