रायगढ़ का 55 हेक्टेयर तटीय क्षेत्र पानी में डूबा
तो क्या सच हो जाएगी 2050 में मुंबई के डूबने की भविष्यवाणी

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. पिछले तीन दशकों में मैंग्रोव, छोटी खाड़ी, दलदली इलाके सहित तटीय क्षेत्रों का क्षरण हो रहा है. अब चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है (55 hectare coastal area of Raigad submerged in water) कि रायगढ़ जिले की 55 हेक्टेयर तटीय क्षेत्र पानी में समा गया है. यह क्षेत्र वानखेड़े स्टेडियम के आकार का लगभग 10 गुना है. मुंबई के पास तटीय भूमि के पानी में डूबने से विशेषज्ञों ने मुंबई के डूबने की जो आशंका जताई थी क्या वह सच होने जा रही है.
पुणे के सृष्टि कंजर्वेशन फाउंडेशन समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण क्षारीय मिट्टी और तटीय क्षरण पर नीतियां बनाने में मदद करने के लिए अनुसंधान कर रहा है. इस शोध के दौरान, बैक बे के मुहाने पर किए गए एक अध्ययन के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि वर्ष 1990 और 2022 के बीच रायगढ़ जिले की लगभग 55 हेक्टेयर तटीय जमीन पानी में डूब गई है. इसमें मैंग्रोव, छोटी खाड़ियां, दलदली जमीन, रेतीले समुद्र किनारों का लगभग 300 मीटर समुद्र तट का क्षरण हुआ है.
एससीएफ उपग्रह डेटासेट विकसित कर रहा है और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहा है. पिछले साल, मुंबई महानगरीय क्षेत्र के साथ खाड़ियों और जल मार्गों की चौड़ाई में कमी और 60 वर्ग मीटर के संबंध में एक आकलन किया गया था. SACF ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि मैंग्रोव क्षेत्र अधिक सिकुड़ गया है. सैटेलाइट चित्रों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने पाया है कि रायगढ़ जिले में देवघर समुद्र तट का 55 हेक्टेयर क्षेत्र पानी के नीचे चला गया है. यह क्षेत्र मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम के आकार का लगभग दस गुना है.
विशेषज्ञ दीपक आप्टे ने कहा कि एक तरफ समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और दूसरी तरफ तटीय क्षेत्रों में रेत खनन के कारण तट की प्राकृतिक ढलान चपटी हो रही है. इससे समुद्र का पानी तेजी से गांवों में प्रवेश करने लगा है. लगातार रेत खनन के कारण खाड़ी की गहराई बढ़ रही है, जिससे ज्वार और तूफान के दौरान अधिक पानी ले जाया जा सकता है, तट के कई हिस्से खारे हो रहे हैं. अध्ययन में पाया गया है कि पुलों का निर्माण और संबंधित कार्य भी देवघर में क्षरण के लिए जिम्मेदार हैं.
शोधकर्ताओं का नया विश्लेषण
अमेरिका के न्यूयॉर्क में क्लाइमेट सेंट्रल के शोधकर्ता स्कॉट कल्प और बेंजामिन स्ट्रॉस ने 2019 में इस पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की थी. जिसमें कहा गया था कि 2050 तक समुद्र के बढ़ने से अधिकांश भूमि जलमग्न हो जाएगी. एक नई रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आप मुंबई के गिरगांव, दादर, माटुंगा या गोराई इलाकों में रहते हैं, तो अगले 30 साल में आपके लिए घर छोड़ने का समय हो सकता है. क्योंकि एक नए शोध से पता चला है कि 30 साल बाद इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा पानी में डूब जाएगा.
पहले के अनुमान से तेज हो हो रहा क्षरण
समुद्र तल से भूमि की ऊंचाई, उस क्षेत्र में वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर के बारे में अद्यतन जानकारी को ध्यान में रखा गया है. पहले के अनुमान से लगभग तीन गुना अधिक क्षेत्र समुद्री ज्वार में डूब जाएगा. मुंबई जैसे शहर में मानसून के मौसम में हाई टाइड होने पर जलजमाव कोई नई बात नहीं है. लेकिन यह रिपोर्ट हमें बताती है कि आज से 30 साल बाद, मुंबई की तस्वीर भविष्य में कैसी दिखेगी. इस रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के ज्यादातर शहर यानी कोलाबा से माहिम, सायन तक पानी में डूबा रहेगा. इसमें मरीन ड्राइव, गिरगांव, चिंचपोकली, भायखला, दादर, वडाला, सायन, तुर्भे, माहुल शामिल हैं. मुंबई के उपनगरों में भी जमीन का एक बड़ा हिस्सा पानी में समा जाएगा.
रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि मुंबई के पास वसई-विरार, नालासोपारा, पालघर, कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई और रायगढ़ रत्नागिरी क्षेत्र भी बड़े क्षेत्रों में जलमग्न हो जाएंगे. मुंबई के अलावा कोलकाता, चेन्नई जैसे शहर और देश के बड़े तटीय इलाके इस तरह का संकट पैदा कर सकते हैं.
6 एशियाई देशों पर मंडरा रहा डूब का खतरा
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अकेले मुंबई क्षेत्र में डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं. वर्तमान में दुनिया भर के उस क्षेत्र में कम से कम 11 मिलियन लोग रहते हैं, जिसके वर्ष 2100 तक जलमग्न होने का खतरा है. अनुमान है कि 2050 तक 19 करोड़ लोग वहां रहेंगे. अगर ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा थोड़ी कम कर दी जाए तो भी इसका बड़ा असर 6 एशियाई देशों भारत, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड में देखने को मिलेगा.
इससे पहले यह अनुमान लगाया गया था कि समुद्र का स्तर बढ़ने से इन देशों में 23 करोड़ सात लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा. यह आंकड़ा पिछले अनुमान से 18.3 करोड़ ज्यादा है. बेशक, जनसंख्या वृद्धि और प्रवास के कारण यह आंकड़ा कम या कम हो सकता है. लेकिन वर्तमान रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि तट के पास निचले इलाकों में लोग बहुत बड़ी संख्या में प्रभावित होंगे.




