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जब मुलायम सिंह बने एक समुदाय के लिए मसीहा,तो दूसरे के लिए घृणा के पात्र
अयोध्या के रक्तरंजित इतिहास के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा मुलायम सिंह का नाम

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. राम मंदिर के लिए हो रहे संघर्ष के दौरान कार सेवकों पर गोली चलाने का हुक्म देकर(Mulayam Singh’s name will always be associated with the bloody history of Ayodhya) समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव एक समुदाय के मसीहा तो दूसरे समुदाय के लिए घृणा के पात्र बन गए थे. अयोध्या गोली कांड के बाद मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के खिलाफ चली लहर में सपा तिनके की तरह उड़ गई. इसका फायदा राम मंदिर की अगुआई कर रही भाजपा को मिला. लेकिन समाजवादी पार्टी के पैर भी देश के सबसे बड़े सूबे में मजबूती से गड गए. अपने राजनीतिक सफर के दौरान मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, एक बार देश के रक्षा मंत्री,सात बार सांसद और आठ बार विधायक चुने गए.
मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव ने न केवल अपनी समाजवादी पार्टी को स्थापित बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी को सीधा लाभ पहुंचाया. अयोध्या में राम मंदिर को लेकर संघर्ष न होता तो न तो मुलायम सिंह यादव इतने ताकतवर नेता बनकर उभरते और न ही भारतीय जनता पार्टी को इतनी तेजी से बढ़ने का मौका मिलता. वह सत्ता शिखर तक नहीं पहुंच पाती. हिंदुओं को रोम रोम में बसे राम भक्तों में मुलायम सिंह के खिलाफ जिस नफरत को जन्म दिया उनकी मृत्यु के बाद भी दिख रही है.
मुलायम सिंह जब अस्पताल में भर्ती हुए तो उनका हाल जानने के लिए सबसे अधिक भाजपा नेता उतावले हो रहे थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अखिलेश यादव को फोन कर सपा नेता के स्वास्थ्य की जानकारी ली, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पीछे नहीं रहना चाहते थे. यह इसलिए कि राजनीति में कोई नेता व्यक्तिगत तौर पर दुश्मनी नहीं पालते. लेकिन कार्यकर्ताओं के मन में ऐसी घृणा पैदा कर देते हैं कि जैसे सामने वाला व्यक्ति सबसे बड़ा अपराधी है.
मंदिर आंदोलन के जरिए देश में अपनी जड़े जमाने में जुटे संघ परिवार के लिए मुलायम सिंह यादव की कार्यप्रणाली ने बेहतर मौका जरूर दिया. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में इस एक घटना के बाद प्रदेश की सियासत में दो ध्रुव बने वह कमोवेश अब तक बरकरार हैं. देश के दूसरे राज्य भी इससे अछूते नहीं रहे. इसके पीछे एक ओर संघ परिवार था तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव और इस विचारधारा से जुडे लोग. नेता आपस में गले मिलते हैं दुख दर्द बांटते हैं. लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच खड़ी नफरत की दीवार कायम रहती है.
सन् 1990 में राम की नगरी अयोध्या की गलियों का रक्तरंजित इतिहास सदैव याद रखा जाएगा. इस आंदोलन के बाद भाजपा जहां सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गई वहीं समाजवादी को भी सत्ता पाने का एक उद्देश्य मिल गया. कांग्रेस के साथ रहे कथित अल्पसंख्यक समाज मुलायमसिंह यादव को मसीहा मान कर खड़ा हो गया. जिसकी फसल आज भी सपा के नेता काट रहे हैं.