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बागेश्वर धाम सरकार की ललकार, महाराष्ट्र से पूरा होगा हिंदूराष्ट्र का सपना

सियासी विरोध के बीच हाईकोर्ट ने दी अनुमति याचिकाकर्ता को फटकार

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

मुंबई. तमाम सियासी विरोध के बावजूद आखिरकार बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उर्फ बागेश्वर बाबा शाम पांच बजे लाखों भक्तों के बीच प्रवचन शुरू कर दिए. आज से मीरा भायंदर में दो दिवसीय कार्यक्रम रखा गया है. उनके कार्यक्रम का कांग्रेस और अंधविश्वास उन्मूलन समिति ने विरोध किया है.(The challenge of the Bageshwar Dham government, the dream of Hindu nation will be fulfilled from Maharashtra)

दिलचस्प बात यह है कि मीरा रोड पुलिस स्टेशन में उनके कार्यक्रम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है. इसके अलावा उनके कार्यक्रम को होने से रोकने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. लेकिन उनके कार्यक्रम को बॉम्बे हाई कोर्ट ने इजाजत दे दी है.

हाईकोर्ट ने लोक अभियोजक प्राजक्ता शिंदे की दलील को स्वीकार कर लिया है. दिलचस्प बात यह है कि हाईकोर्ट ने वरिष्ठ वकील नितिन सातपुते की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि यह याचिका केवल प्रचार के लिए दायर की गई थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि पुलिस को कानून का पालन बेहद गंभीरता से करना चाहिए.

क्या है नितिन सातपुते का तर्क?

वकील नितिन सातपुते की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज उर्फ बागेश्वर धाम सरकार को दी गई अनुमति संदिग्ध है. बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस आरडी धानुका और जस्टिस गौरी गोडसे की दो जजों की बेंच के सामने मामले की सुनवाई हुई. पुलिस ने इस कार्यक्रम के आयोजकों को नोटिस जारी किया है. वह नोटिस नितिन सातपुते ने कोर्ट में पेश किया था.

बागेश्वर धाम सरकार, मुंबई में
मीरा भायंदर में दो दिवसीय कार्यक्रम में उपस्थित बागेश्वर बाबा सरकार प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

पुलिस ने 17 अप्रैल को आयोजकों को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में उल्लेख किया गया है कि यह निषेधाज्ञा 9 मार्च से 23 मार्च तक लागू है. इस नोटिस के अनुसार, सार्वजनिक घोषणाएं, गाना, वाद्य यंत्र बजाना, भाषण देना और 5 से अधिक लोगों की भीड़ इकट्ठा करना प्रतिबंधित है. वहीं नोटिस में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज उर्फ बागेश्वर धाम सरकार का स्पष्ट उल्लेख किया गया है और इस निषेधाज्ञा में प्रतिबंधों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है.

नितिन सातपुते द्वारा कोर्ट को यह नोटिस सौंपे जाने के बाद जज ने एक अहम सवाल पूछा. एक ओर नोटिस जारी किया गया , बाद में अनुमति कैसे दी गई? जस्टिस ने सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया. इसके बाद थोड़ी देर बाद फिर से सुनवाई शुरू हुई.

क्या है सरकारी वकील की दलील?

सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे ने यह कहकर अपनी दलील शुरू की कि निषेधाज्ञा सामान्य है. लेकिन इन पाबंदियों का पालन करने के लिए बागेश्वर धाम सरकार ने आयोजकों को नोटिस दिया है. तो इस नोटिस की व्याख्या कैसे करें? निषेधाज्ञा के अनुसार यह कार्यक्रम नहीं हो सकता है, तो इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? कोर्ट ने ऐसे सवाल उठाए. सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे ने इस पर जोरदार बहस की.

“16 मार्च को, वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक विजय सिंह बागल ने इस आयोजन की अनुमति दी. इस कार्यक्रम का कानून द्वारा कड़ाई से पालन किया जाएगा. कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग कराई जाएगी. प्रतिबंधों के अनुपालन की निगरानी की जाएगी. एक निषेधाज्ञा सामान्य है. कानून में एक प्रावधान है कि ऐसे कार्यक्रमों को प्रतिबंधों के अधीन अनुमति दी जा सकती है”, प्राजक्ता शिंदे ने तर्क दिया. सरकारी वकीलों को सुनने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने अधिवक्ता नितिन सातपुते की याचिका खारिज कर दी.

इससे पहले कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस नेताओं ने बागेश्वर धाम सरकार के मुंबई में आगमन का विरोध जताया था.  उनकी मांग थी कि महाराष्ट्र के संतों का अपमान करने वाले को महाराष्ट्र में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. सियासी विरोध के बावजूद बागेश्वर बाबा सरकार ने मुंबई से हिंदुराष्ट्र निर्माण का बिगुल बजा कर विरोधियों की ठठरी बांध दी.

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