यूपी के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का हुआ निधन, गोरखपुर में शोक की लहर

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
गोरखपुर.उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता पंडित हरिशंकर तिवारी (pt. HariShankar Tiwari) का मंगलवार शाम को निधन हो गया. उनके निधन की सूचना मिलते ही गोरखपुर (Gorakhpur) में शोक की लहर फैल गई. निधन की खबर से उनके निवास हाता पर समर्थकों की भीड़ जुट गई. दो साल पहले उनकी मौत के सम्बंध में अफवाह उड़ी थी. आज शाम 7बजे उन्होंने अंतिम सांस ली और हमेशा के लिए चिर निद्रा में शो गए. (UP’s Bahubali leader Harishankar Tiwari passed away, mourning in Gorakhpur)
ऐसा रहा राजनीतिक सफर
चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र के चुनाव का इतिहास खंगालने पर बाहुबली हरिशंकर तिवारी का नाम बार-बार, उभरकर सामने आता है. हरिशंकर तिवारी इस सीट पर 22 वर्षों (1985 से 2007) तक लगातार चुनाव जीत कर विधायक चुने गए. उन्होंने पहला चुनाव 1985 में निर्दलीय लड़ा था, फिर अलग-अलग राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव लड़कर जीतते रहे. तीन बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते व यूपी सरकार में मंत्री भी बने. साल 2007 के चुनाव में बसपा ने राजेश त्रिपाठी को अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार था. राजेश त्रिपाठी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता हरि शंकर तिवारी के किले को ढहा दिया और उन्हें शिकस्त देते हुए वर्षों के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर सीट कब्जा जमा लिया.
तिवारी के निधन से माफिया राज भी खत्म
पूर्वांचल में हरि शंकर तिवारी का जलवा देखने लायक था. उनके आगे किसी की नहीं चल पाती थी. प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ श जब गोरखपुर से सांसद हुआ करते थे तो राजनीति के महारथी हरि शंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा से विधायक हुआ करते थे. हालांकि योगी से हरि शंकर तिवारी बहुत सीनियर नेता हुआ करते थे. दोनों नेताओं में वर्चस्व को लेकर आपस में गतिरोध बना रहता था. गोरखपुर का चिल्लूपार विधानसभा हरि शंकर तिवारी का गढ़ माना जाता था. सक्रिय राजनीति में रहते हुए उनके इस किले को कोई भेद नहीं सका. आज उनके निधन होने की सूचना से समूचा गोरखपुर शोक में डूबा हुआ है. उनके निधन के साथ ही गोरखपुर में माफिया राज भी खत्म हो गया है. उनके एकमात्र दुश्मन मुख्तार अंसारी जेल में है.
वीरेंद्र प्रताप शाही से थी शत्रुता
पं. हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के बीच गोरखपुर में वर्चस्व स्थापित करने के लिए हुई शत्रुता जगजाहिर है. इस दौरान कई गुट बने लेकिन तिवारी का वर्चस्व कायम रहा. अंडरवर्ल्ड के उभरते माफिया श्रीप्रकाश शुक्ल ने लखनऊ में वीरेंद्र प्रताप शाही को गोलियों से भून डाला. उसके अगले निशाने पर हरिशंकर तिवारी थे. लेकिन कल्याण सिंह सरकार में मंत्री तिवारी को मारने से पहले ही श्रीप्रकाश शुक्ल का एनकाउंटर कर दिया गया. श्रीप्रकाश ने मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को 6 करोड़ रुपए में मारने की सुपारी ली थी. श्रीप्रकाश को चिल्लूपार से चुनाव लड़ना था. लेकिन उसकी यह इच्छा अधूरी रह गई. कितने माफिया आए और गए हरिशंकर तिवारी का जलवा कायम रहा. माफियाओं की शरणस्थली बने गोरखपुर में उस दौर की देन मुख्तार अंसारी भी है जो आज जेल की सलाखों में बंद है.