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धनतेरस का समुद्र मंथन से क्या है संबंध, सोना चांदी ही नहीं अच्छे स्वास्थ्य का भी प्रतीक है धनतेरस

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

मुंबई। इस वर्ष धनतेरस का त्यौहार 18 अक्टूबर 2025, शनिवार को पड़ रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।  इस वर्ष धनतेरस का मुहूर्त सुबह 8 बजकर 50 मिनट से 10.35 बजे तक है। उसके बाद 12 बज कर 1 मिनट से 12 बज कर 48 मिनट तक अभिजित मुहूर्त है। शाम को 6 बजकर  48 मिनट से 6 बज कर 18 मिनट तक खरीदारी कर सकते हैं। 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बज कर 52 मिनट तक खरीदारी करने का मुहूर्त है। इस दिन सोना चांदी, बर्तन, और झाडू खरीदा जाना शुभ माना जाता है।  क्या आप जानते हैं कि धनतेरस का संबंध समुद्र मंथन से भी है। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है। (What is the connection of Dhanteras with the churning of the ocean? Dhanteras is not only a symbol of gold and silver but also of good health)

जब क्षीण हो गई देवताओं की शक्तियां 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा ने इंद्र को श्राप दे दिया था, जिससे सभी देवताओं का तेज और शक्ति क्षीण हो गई थी। इसका लाभ उठाकर दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर दिया और पूरे ब्रह्मांड में अंधकार फैल गया। दैत्यों के बढ़ते अत्याचारों को देखकर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन करने की सलाह दी।

समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई गर्जना
भगवान विष्णु की सलाह पर देवताओं और दानवों में अमृत पीने की होड़ लग गई। मंदार पर्वत मथनी बना और वासुकी नाग रस्सी। इसकी सहायता से देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से सबसे पहले घातक विष ‘हलाहल’ निकला। इस विष के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया। जिसके बाद उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

भगवान धन्वंतरि का अवतार
इसके बाद, समुद्र मंथन से एक के बाद एक दिव्य निधियां निकलने लगीं। देवी लक्ष्मी समृद्धि लेकर प्रकट हुईं और अंत में, भगवान धन्वंतरि समुद्र से प्रकट हुए। उनके हाथ में अमृत कलश और आयुर्वेद का एक प्राचीन ग्रंथ था। वे अपने साथ अमरता का वरदान और आरोग्य का ज्ञान लेकर आए थे। तभी से इस दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को पृथ्वी पर स्वस्थ जीवन के लिए दिव्य कल्याण का प्रतीक माना जाता है। धनत्रयोदशी से जुड़ी यह कथा हमें याद दिलाती है कि यह त्योहार केवल धन, सोना या चांदी का नहीं, बल्कि हमारे सबसे बड़े खजाने, यानी अच्छे स्वास्थ्य और शांतिपूर्ण जीवन का प्रतीक है।

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