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चुनावी मैनेजमेंट में फेल हो गई सपा
अखिलेश के नीचे से सरकी जमीन

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
Up Election 2022 लखनऊ. उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janta Party) और समाजवादी पार्टी (Samajavadi Party) एडी चोटी का जोर लगा रही हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव में ‘बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा’ के भरोसे चुनाव में उतरी है. कांग्रेस उम्मीदवारों की आशा की लौ अकेले प्रियंका वाड्रा पर टिमटिमा रही है. क्योंकि उसके पास अब चुनाव मैनेजमेंट करने के लिए न नेता बचे हैं और न ही कार्यकर्ता. लेकिन इस पूरे चुनाव में सरगर्मी भरने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का दिखावटी मैनेजमेंट पहले चरण की वोटिंग के बाद धराशायी होता दिख रहा है. उनके पैर के नीचे से जमीन सरक चुकी है.
किसी चुनाव को केवल बयानों और हौंसले से नहीं जीता जा सकता. चुनाव जीतने के लिए बेहतर मैनेजमेंट की जरूरत होती है. मैनेजमेंट में भाजपा के मुकाबले सभी पार्टियां निचले पायदान पर खड़ी हैं. भाजपा का पन्ना प्रमुख,बूथ, एजेंट, बूथ प्रभारी और उसके उपर शक्ति केंद्र चुनावों में एक- एक वोटर से संपर्क कर भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल पर वोट डलवाने का काम करते हैं. यही लोग पार्टी की योजनाओं को भी लोगों तक पहुंचाते हैं. भाजपा ने यूपी में 3 लाख 80 हजार पन्ना प्रमुख बनाए हैं. भाजपा के मुकाबले मैनेजमेंट में सपा कहीं भी नहीं ठहरती. सपा अपने बूथ इंचार्ज और स्थानीय नेताओं के भरोसे है. उसमें भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक जाति विशेष के ही कार्यकर्ता दिखते हैं.
इस बार चुनाव में अखिलेश यादव (Akhlesh Yadav)के चलाए गए गठबंधन अभियान के बदौलत कथित लहर पैदा करने की कोशिश की गई. इसी लहर की रौ में सपा का टिकट पाने की होड़ मच गई. एक सीट पर 25-30 दावेदार खड़े हो गए. जबकि बीजेपी ने एक सीट से केवल 3 नाम ही मंगाए थे. सपा में जिसे टिकट नहीं मिला वे या तो भीतरघात करने लगे या इस्तीफा देकर दूसरी पार्टियों में चले गए. भाजपा से भी कई मंत्री, विधायक सपा में शामिल हुए लेकिन सपा में जाने के कारण उसके अपने दावेदारों के टिकट कट गए. गठबंधन के सहयोग दल के नेता अपनी सीट बचाने में जोर लगा रहे हैं. जिस उम्मीद से अखिलेश उन्हें लाये थे वह मकसद भी पूरा होता नहीं दिख रहा है. अब सारा दारोमदार अखिलेश के कंधों पर है. वे दी
दिन रात प्रचार में व्यस्त हैं. सपा के आम कार्यकर्ता, नेता संवादहीनता के शिकार हो गए हैं. पार्टी के बड़े नेता तक उनकी बात नहीं पहुंच रही है. संवादहीनता का ही नतीजा है कि उनके उम्मीदवार अपना टिकट वापस कर हाथी की सवारी कर रहे हैं.
लखनऊ की मलिहाबाद सीट से उम्मीदवार घोषित की गई पूर्व सांसद सुशीला सरोज ने यह कहकर अखिलेश यादव की बेईज्जती कर दी कि उन्होंने संबंधित सीट से दावेदारी नहीं की थी. आनन फानन में सुशीला सरोज को विधायक अंबरीश पुष्कर का टिकट काटकर मोहनलालगंज से टिकट दे दिया गया. तरह
मंटेरा से उम्मीदवार घोषित मो. रमजान ने टिकट लौटाकर कांग्रेस के टिकट पर श्रावस्ती से चुनाव लड़ रहे हैं.
भदोही के ज्ञानपुर से डॉ. विनोद कुमार बिंद को
उम्मीदवार बनाया गया. उन्होंने भी चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया है. वह मिर्जापुर के मझवां से टिकट मांग रहे हैं. प्रयागराज पश्चिम में पहले अमरनाथ मौर्य टिकट दिया गया था. बाद में वह टिकट ऋचा सिंह को थमा दिया गया. तीसरी बार एक पत्र जारी कर कहा गया कि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार अमरनाथ मौर्य हैं, लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारी ने फार्म ए व बी के आधार पर सपा का अधिकृत उम्मीदवार ऋचा को मान लिया है. जगदीशपुर से रचना कोरी सपा ने टिकट दिया था. कोरी का टिकट काटकर विमलेश को टिकट दे दिया गया.
उधर चचा शिवपाल सिंह यादव अपनी हर सभा में अखिलेश को कोस रहे हैं. वे कहते हैं कि पहले हमें 100 सीट देने की बात हुई थी. फिर 45 पर बात हुई. अखिलेश ने कहा कि वह भी ज्यादा है. बात 25 पर बनीं लेकिन केवल एक सीट दी. हम तो नेताजी के कहने पर प्रसपा का सपा में विलय कर दिए. अपने साथ हुई धोखेबाजी से वे परेशान हो गए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे को भी टिकट नहीं मिला. जिसके लिए भाजपा छोड़ कर आये, उन पर भगोडे का तमगा भी मिला, खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. पडरौना से सीट बदल कर फाजिलनगर में त्रिकोणीय लड़ाई में फंस गए हैं. जहूराबाद सीट पर ओमप्रकाश राजभर
की राह में सपा की बागी फातिमा ने कांटे बिछा दिये हैं. अति उत्साह में उठाए गए कदम और खराब मैनेजमेंट के कारण यदि उत्तर प्रदेश में सपा के हाथ से जीत फिसलती है तो अखिलेश अब किसी पर दोष नहीं मढ़ सकते. हां ईवीएम की बात और हैं.




