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शिवसेना किसकी सुप्रीम कोर्ट को करना है फैसला

मामले की सुनवाई एक अगस्त तक टली

जानिए सुप्रीम कोर्ट में क्या तर्क रखे गए

आईएनएस न्यूज नेटवर्क

दिल्ली.  एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद अब सवाल खड़ा कर दिया है कि शिवसेना किसकी है. (Shiv Sena whose Supreme Court has to decide)बाहर इस सवाल का हल खोजना कठिन हो गया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट में ही आखिरी फैसला होगा. सुप्रीम कोर्ट में आज दोनों तरफ के वकीलों की बहस के बाद मामले की सुनवाई एक अगस्त को होगी.

आज  सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई, इस बार शिवसेना और शिंदे समूह की ओर से कड़ी दलीलें दी गईं और अदालत ने दोनों समूहों को हलफनामा दाखिल करने को कहा. अब इस मामले की सुनवाई एक अगस्त को होगी. शिवसेना और शिंदे समूह को मंगलवार तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया है.

शिंदे गुट के शिवसेना में बगावत को लेकर शिवसेना की ओर से याचिका दायर की गई है. आज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. सुनवाई रमन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष की गई. शिवसेना की 5 याचिकाओं पर सुनवाई हुई. एकनाथ शिंदे की ओर से अधिवक्ता हरीश साल्वे, नीरज कौल ने तर्क दिया. शिवसेना की ओर से अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी. राज्यपाल की ओर से अधिवक्ता तुषार मेहता ने दलील दी.

शिवसेना के वकील कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत में कहा गया कि कोर्ट में मामला लंबित रहने के बावजूद  एकनाथ शिंदे का शपथ ग्रहण हुआ. राज्यपाल ने विधायकों के इस समूह को बहुमत परीक्षण करने की भी अनुमति दी. कानून की खुले आम धज्जियां उड़ाई गई.  राज्यपाल ने शिंदे को दिलाई शपथ उन्हें पता चला था कि शिंदे की अयोग्यता का मामला उपाध्यक्ष के पास लंबित है. यह साबित होने से पहले कि कोई सदस्य पात्र है या अपात्र उससे पहले राज्यपाल ने सदन में बहुमत परीक्षण की अनुमति दी. सिब्बल ने कहा कि कि बहुमत के परीक्षण पर उसी तरह कार्रवाई की जानी चाहिए थी जैसे उपाध्यक्ष ने की थी कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता पर भी रोक लगा दी. लेकिन 10वीं शेड्यूल के मुताबिक कार्रवाई कैसे रुक सकती है  इस मामले में जितनी देर होगी उतनी ही मुश्किल और बढ़ेगी. वह कानून जिसने पार्टियों को दल बदलने से रोका जा सकता है  उन्हें कानून द्वारा संरक्षित किया जा रहा है.

शिवसेना के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि शिंदे समूह किसी पार्टी में शामिल नहीं हुआ लेकिन फिर भी शपथ ग्रहण समारोह हुआ इसलिए शिंदे समूह के विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए.

शिंदे गुट से जाने-माने वकील हरीश साल्वे पेश हुए. साल्वे ने तर्क दिया कि शिंदे समूह को अयोग्य ठहराने का मुद्दा यहां लागू नहीं होता है. शिंदे गुट ने अभी भी शिवसेना को नहीं छोड़ा है. जिसके पास ज्यादा जगह होती है उसे नेता कहा जाता है. इसे विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया है. इसलिए  शिंदे समूह को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने पूछा है कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए. यह मामला संवेदनशील है. अगर विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है, तो यह कैसे टूट गया? यह प्रश्न भी पूछा गया है.

साल्वे ने कहा कि हमें आठ दिन की अवधि बढा कर दें इस मामले में कुछ संवैधानिक पेचीदगियां है, उन्हें पेश करने के लिए समय चाहिए. हरीश साल्वे की 8 दिन की मांग का शिवसेना के कपिल सिब्बल ने कड़ा विरोध किया.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच के पास काफी कानूनी पेंच है। इसलिए कहा गया है कि इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच के सामने की जाए.

तुषार मेहता ने राज्यपाल की ओर से तर्क दिया कि शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. दोनों साथ में वोट मांगने लोगों के पास गए. तुषार मेहता ने तर्क दिया है कि अगर आज पार्टी में दो गुट हैं तो इसमें गलत क्या है?

कपिल सिब्बल ने कहा कि यदि सुनवाई टाल दी गई है तो महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात को जस का तस रखा जाए. लेकिन, अदालत ने सिब्बल की मांग पर कोई फैसला नहीं सुनाया. अब एक अगस्त को अहम सुनवाई होगी.

क्या है पूरा प्रकरण 

एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 39 विधायकों के साथ विद्रोह का आह्वान किया.पहले सूरत फिर गुवाहाटी में रुके. उस वक्त शिवसेना की ओर से शिंदे समूह के 16 विधायकों को नोटिस जारी किया गया था. इस नोटिस के खिलाफ शिंदे समूह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शिवसेना से अलग हुए शिंदे समूह को संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के अनुसार किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होने के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए और उनके समर्थन से सत्ता में आई सरकार को असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए. शिवसेना ने इस बड़ी मांग समेत कई बातों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. इसलिए शिंदे समूह ने अयोग्यता नोटिस और समूह के नेता के रूप में अजय चौधरी की नियुक्ति को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है.

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