मंडलों, घरों में धूमधाम से हुआ मां दुर्गा का आगमन
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई: शारदीय नवरात्रि के आज प्रथम दिन मां आदि शक्ति का मंडपों और घरों में आगमन हो गया. (Arrival of Maa Durga with pomp in mandals, houses on shardiya Navaratri) हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है. शारदीय नवरात्रि उत्सव के लिए घटस्थापना आज (26 सितंबर) से शुरू हो रही है नवरात्रि के इस पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप यानी देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है. शारदीय नवरात्रि पर दुर्गा अष्टमी व्रत, अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन, नवमी तिथि पर महानवमी और दशमी तिथि पर दशहरा या विजयदशमी पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है. प्रतिपदा के दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा घटस्थापना या कलश स्थापना से शुरू होती है.
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है. पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’, पौराणिक कथा के अनुसार मां शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी (सती) और दक्ष की पुत्री थीं एक बार जब दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन कराया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शंकर को नहीं. उधर सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो रही थीं. शिवजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन उन्हें नहीं; ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है. सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी.
सती जब घर पहुंचीं तो वहां उन्होंने भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव देखा. दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक शब्द कहे. इससे सती के मन में बहुत पीड़ा हुई. वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया. इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया. फिर यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं.हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है. माँ की सवारी वृष है तो उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है.
शैलपुत्री का रूप
माथे पर अर्ध चंद्र दाहिने हाथ में त्रिशूल
बाएं हाथ में कमल नंदी बैल की सवारी
ज्योतिषीय विश्लेषण
ज्योतिषी के अनुसार माँ शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए उनकी उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव भी निष्क्रिय हो जाते हैं.
मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
आज से नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और 5 अक्टूबर, बुधवार को इसकी समाप्ति होगी. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है.
नवरात्रि तिथि (Navratri 2022 date)
प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 26 सितम्बर 2022
द्वितीया (मां ब्रह्मचारिणी): 27 सितम्बर 2022
तृतीया (मां चंद्रघंटा): 28 सितम्बर 2022
चतुर्थी (मां कुष्मांडा): 29 सितम्बर 2022
पंचमी (मां स्कंदमाता): 30 सितम्बर 2022
षष्ठी (मां कात्यायनी): 01 अक्टूबर 2022
सप्तमी (मां कालरात्रि): 02 अक्टूबर 2022
अष्टमी (मां महागौरी): 03 अक्टूबर 2022
नवमी (मां सिद्धिदात्री): 04 अक्टूबर 2022
दशमी (मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन): 5 अक्टूबर 2022
ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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