नवरात्रि के सातवें दिन आज माता कालरात्रि की पूजा/शुंभ-निशुंभ का किया था वध
जानिए,ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री से मां कालरात्रि की महिमा

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है. (Navratri Seventh day Worship of Maa Kalratri) इन्हें देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है. देवी के नाम का अर्थ- काल अर्थात् मृत्यु/समय और रात्रि अर्थात् रात है. देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है.
माता कालरात्रि का स्वरूप
देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं. वे गधे की सवारी करती हैं. देवी की चार भुजाएं हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएं दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खड्ग हैं.
पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में हाहाकार मचा रखा था. इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया. तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए. जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा.
जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा. तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया. तदोपरांत देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा. इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया. वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था. तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो.
माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं. आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में आक्रमण करने की लगातार कोशिश कर रहा था. इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था. तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं. उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसका अंत कर दिया.इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया.
ज्योतिषीय विश्लेषण
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं. कहते हैं देवी के इस रूप की पूजा करने से भय, दुर्घटना और रोगों का नाश हो जाता है. ज्योतिष अनुसार मां कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं.इसलिए ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं. इनकी उपासना से शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होने की मान्यता है.
सिद्ध मंत्र
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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