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बीएमसी अधिकारियों ने ली राहत की सांस, जगी उम्मीद जैसे चहल ने किया डॉ भूषण गगरानी वैसा नहीं करेंगे

आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. केंद्रीय चुनाव आयोग की सख्ती के बाद चार साल से मनपा आयुक्त और प्रशासक पद पर विराजमान इकबाल सिंह चहल, अतिरिक्त आयुक्त अश्विनी भिड़े, पी वेलरासू के स्थान पर नये भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों ने पदभार संभाल लिया. मुंबई महानगरपालिका में हुए इस बदलाव से मनपा में कार्यरत अधिकांश अधिकारियों ने राहत की सांस ली है. अधिकारियों का कहना है कि जी हजूरी में लिए गए फैसले मनपा को खोखला बना दिया है. डॉ गगरानी सुलझे हुए अधिकारी हैं उम्मीद है कि वे नियमों के खिलाफ जा कर कोई फैसला नहीं करेंगे.(BMC officials heaved a sigh of relief, hope arose that Dr. Bhushan Gagrani will not do the same as Dr Chahal did)
कोविड संक्रमण के समय और बाद में राज्य सरकार की सत्ताधारी पार्टी और मनपा अधिकारियों ने की ऐसे निर्णय लिए जिससे मनपा की साख को गहरा धक्का लगा है. मनपा आयुक्त रहे इकबाल सिंह चहल पर आज की सत्ताधारी पार्टी के नेता (तत्कालीन विपक्षी दल) कोविड के दौरान खिचड़ी, बॉडी बैग खरीद, दवा खरीद घोटाला जैसे कई आरोप लगा रहे थे. राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद जोर जोर से कोविड घोटाले की जांच का ढिंढोरा पीटा गया, दो तीन राजनीतिक दलों के निचले दर्जे के नेता कुछ नेता के अलावा एक भी बड़े नेता या अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं हुई. उस समय राज्य और मनपा की सत्ताधारी पार्टी भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप से इनकार करती रही.
राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया. ईडी, आयकर विभाग सक्रिय हो गया. नेताओं अधिकारियों के यहां छापे डाले जाने लगे. शिवसेना के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार, घोटालों के गंभीर आरोप लगाए गए लेकिन पार्टी बदलते ही जिन नेताओं के नाम सामने आए अब उनके खिलाफ हो रही जांच कहां पहुंची किसी को पता नहीं. पार्टी बदलते ही सभी घोटाले गायब हो गए.
मनपा आयुक्त इकबाल सिंह चहल और मनपा के दूसरे अधिकारी जो तत्कालीन सरकार के खास बने हुए थे सरकार बदलते ही बदल गए. वे धीरे धीरे नई सरकार के मुखिया के खास बन बैठे, जिस आयुक्त को ईडी ने पूछताछ के लिए अपने आफिस बुलाया जांच की धार कुंद हो गई. परिवर्तित सरकार के खास बनने पर उनका सम्मान किया जाने लगा, शाबाशी मिलने लगी. अब खबर है कि इकबाल सिंह चहल महाराष्ट्र के अगले चीफ सेक्रेटरी के रेस में सबसे आगे हैं. क्योंकि नितिन करीर 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. जिसकी सत्ता आई उसे साधने में चहल को महारत हासिल है. विपक्ष चिल्लाता रहे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है.
डॉ. गगरानी के सिर पर कंगाल हो चुकी मनपा का ताज
मुंबई महानगर पालिका जिसका बजट देश के कई राज्यों से भी अधिक था आज कंगाली की हालत में पहुंच चुकी है. मुंबई में G 20 का आयोजन हो या प्रोजेक्ट सब पर मनपा को खर्च करने लगा दिया गया. हजारों करोड़ रुपए का दहिसर-भायंदर प्रोजेक्ट बीएमसी के मत्थे मढ दिया गया. मनपा की मुलुंड स्थित जमीन अडानी समूह को प्रोजेक्ट के लिए दे दिया गया. धारावी की 80 प्रतिशत जमीन मनपा की है. डीआरपी प्रोजेक्ट में उसे क्या मिलेगा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले महालक्ष्मी मंदिर कोरीडोर, मुंबा देवी मंदिर का विकास, श्री सिद्धिविनायक मंदिर का विकास मनपा के सिर मढ़ दिया गया. नियमों के विपरित कई ऐसे निर्णय लिए गए जिससे मनपा का कोई सरोकार नहीं था. मुंबई में शुरू होने वाले मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए भी बड़ी राशि एमएमआरडीए को देने के लिए फरमान सुना दिया गया. राज्य सरकार से जो भी निर्देश मिला बिना विचार किए डॉ चहल हां कहते गए. बीएमसी का बजट 60 हजार करोड़ रुपए पेश किया गया. लेकिन उस पर ढ़ाई लाख करोड़ रुपए का काम सौंप दिया गया. आय के नये स्रोत तलाश रही मनपा को राज्य सरकार से धेला भी नहीं मिला उल्टे मनपा का खजाना खाली कर दिया गया.
मनपा अधिकारियों के सिर पर जांच की तलवार लटका दी गई. जेल जाने की मजबूरी कहें या वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव मुंबई मनपा के अधिकारी आंख बंद कर हर सही या गलत काम करने को तैयार हो गए. जब घर का मुखिया ही जी हूजूरी में लगा हो तो कोई विरोध कैसे कर सकता है.
डॉ भूषण गगरानी के सिर पर लगभग खोखली हो चुकी मनपा का ताज सौंपा गया है. मनपा अधिकारियों को उम्मीद है कि वे डॉ चहल के जैसा नियमों के खिलाफ जाकर कोई काम नहीं करेंगे. मुंबई मनपा की खोई साख दुबारा वापस लाएंगे.