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मेट्रो – 3 कारशेड पर हाईकोर्ट के तल्ख तेवर
केंद्र, राज्य सरकार को फटकार,निजी मतभेद भुलाकर निकालें समाधान

कोर्ट ने कहा, राज्य सरकार तकनीकी दिक्कतों पर अपनी भूमिका स्पष्ट करे
आईएनएस न्यूज नेटवर्क
मुंबई. विगत कई वर्षो से लटके मेट्रो-3 कारशेड (High court on metro-3 carshed) मामले में मुंबई हाईकोर्ट ने अपने तेवर तल्ख कर लिए हैं.कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से आपस में समन्वय बनाने और आपसी मतभेद भुलाकर कारशेड का समाधान निकालने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि अपनी राजनीति न्यायालय में मत लाएं. जो उचित हो ऐसा निर्णय लें क्योंकि यह जनहित से जुड़े सवाल हैं.
राज्य सरकार ने आरे कालोनी स्थित मेट्रो कारशेड परियोजना को बंद कर कारशेड को कांजूरमार्ग ले जाने का निर्णय लिया था. केंद्र सरकार का कहना है कि जमीन का मालिकाना अधिकार के विवाद अभी निराकरण नहीं हुआ उससे पहले राज्य सरकार द्वारा मेट्रो कारशेड हटाने का फैसला अवैध है. साल्ट कमिश्नर ने यह कहते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. कमिश्नर ने कांजूरमार्ग की जमीन पर नमक विभाग की जमीन होने का दावा किया है. उसी याचिका में बिल्डर महेश गरोडिया ने हस्तक्षेप किया है जबकि सामाजिक कार्यकर्ता जोरु बथेना ने भी हस्तक्षेप कर मांग की है कि यह परियोजना जनहित में है इसलिए जल्द सुनवाई कर निर्णय लिया जाए. इन सभी याचिकाओं की चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और गिरीश कुलकर्णी की बेंच एकत्रित सुनवाई कर रही है.
राज्य सरकार के महाधिवक्ता अनिल सिंह ने कोर्ट को बताने का प्रयास किया कि कुछ तकनीकी अड़चन के कारण परियोजना को बंद किया गया है. उन्हें बीच में ही रोक कर कोर्ट ने कहा कि हमें पता है क्या चल रहा है. हम सब आम लोगों को सेवा देने के लिए यहां हैं. अपना निजी मतभेद न्यायालय में मत लाएं. केंद्र और राज्य सरकार अपने प्रश्न कोर्ट के बाहर क्यों नहीं सुलझाते हैं. अनिल सिंह ने कहा कि हमारा कोई निजी मतभेद नहीं है. हम मुंबईकरों के दीर्घकालिक सार्वजनिक हित का विचार कर रहे हैं. कई विशेषज्ञों से तकनीकी सलाह और राय के बाद आरे कारशेड हटाने का निर्णय लिया गया है.
सिंह ने कोर्ट को बताया कि मेट्रो-3 कारशेड के लिए कांजूरमार्ग की जमीन में कई तकनीकी दिक्कतें हैं. केंद्र सरकार के शहरी विकास विभाग के अपर सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर कहा है कि आरे की जमीन कारशेड के लिए उपयुक्त है.
हाईकोर्ट ने कहा कि तकनीकी समस्या दूर हो सकती है. कांजूरमार्ग के बारे में विशेषज्ञों की राय हम जरूर सुनेंगे लेकिन राज्य सरकार अपनी भूमिका स्पष्ट करे. केंद्र और राज्य एक साथ बैठकर समस्या का समाधान निकालें. यह सार्वजनिक हित का मामला है जो तकनीकी अड़चन के कारण लंबित है. यदि समस्या का समाधान जल्द नहीं निकला तो अंत में हमें गुणवत्ता के आधार पर निर्णय देना पड़ेगा.